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नई दिल्ली | शान्तनु चैतन्य
(एग्जीक्यूटिव एडिटर-साउथ एशिया)

लंका में ‘कलियुग के रावण’ का वध करने के लिए एक बार फिर भारत ने सेतु बांधा है। यह सेतु इस बार पत्थर से नहीं बना है, बल्कि डिजिटल है।
श्रीलंका में साल भर पहले गृह युद्ध के हालात थे। आगजनी हो रही थी। जनता सड़कों पर थी और लूटपाट के मंजर आम थे।
लोग जान बचाकर भाग रहे थे। राष्ट्रपति तक को जान बचाकर गायब होना पड़ा था क्योंकि जनता राष्ट्रपति आवास तक घुस गई थी।
शायद आपको वजह याद हो कि किस ‘रावण’ के पीछे जनता सड़क पर थी। अगर नहीं, तो हम याद दिलाए देते हैं। लंका की अर्थव्यवस्था का दहन हो चुका था। चारों ओर त्राहि मची थी। प्याज-टमाटर जैसी सब्जियां 300 श्रीलंकाई रुपये के ऊपर थीं।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पटरी से ऊतर जाए, तो ऐसी ही त्राहि मचती है।
फिलहाल श्रीलंका के हालात सामान्य हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था किस आंधी के झोंके से नेस्तनाबूद हो जाए, ठिकाना नहीं।
अब आते हैं असली बात पर कि श्रीलंका में डिजिटल पेमेंट का श्रीगणेश सोमवार से हो गया है। अभी तक यूपीआई से कोसों दूर श्रीलंका ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए शुरुआत की है और इस काम में उसका मददगार बना है भारत। यूपीआई को विकसित करने में भारत ने पूरा सहयोग दिया है।
डिजिटल मनी ट्रांसफर के श्रीलंका में इस ऐतिहासिक पल के साक्षी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बने। वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मोदी और श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे जुड़े और इसी के साथ श्रीलंका में भी डिजिटल पेमेंट के युग का सूत्रपात हुआ।

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