अलसी को बुंदेलखंड में बिजरी कहा जाता है

शिव चरण चौहान

अलसाई अलसी के फूल।
मन करता है आदिम भूल।।

बुंदेली और अवधी लोकगीतों में अलसी के फूल की सुंदरता के चित्र मिलते हैं।
करीब डेढ़ 2 फीट लंबी अलसी के पौधे में शिशिर ऋतु में फूल आते हैं। दिसंबर और जनवरी फरवरी में अलसी के नीले नीले फूल बेहद लुभावने लगते हैं। हल्के बैंगनी रंग के नीले फूल हवा के साथ लहराते हैं तो पीली सरसों के फूल भी शरमा जाते हैं। गेहूं के नन्हे नन्हे श्वेत पुष्प अलसी के फूलों का स्वागत करते हैं तो अरहर के पीले फूल झुक झुक कर अलसी के फूलों पर कुर्बान जाते हैं। खेतों में अलसी फूलने पर जिसने यह दृश्य देखा है वह बरबस अलसी की फूलों की ओर आकर्षित होता रहा होगा। अलसी के नीले फूल भगवान शिव को बहुत पसंद हैं। अलसी के फूलों से पूजा करने पर भोले शंकर भक्तों का भंडार भर देते हैं ऐसी मान्यता है।
अलसी एक तिलहनी पौधा है। अलसी के बीज चपटे चपटे कत्थई रंग के होते हैं आगे नोक निकली होती है। जहां सरसों और राई के फल( बीज) गोल होते हैं वही अलसी के बीज चपटे लंबे होते हैं। अलसी के बीज तेल निकालने के काम तो आते ही हैं। अलसी के तेल से वार्निश करने के लिए रंग भी बनाया जाता है।
आयुर्वेद में अलसी को एक बहुत उपयोगी और चमत्कारी पौधा बताया गया है। अलसी के बीज और उसके तेल से अनेक औषधियां तैयार की जाती हैं। अलसी के बीजों का तेल गुनगुना कर पैरों में लगाने पर गठिया रोग ठीक हो जाता है। अलसी का तेल कामोत्तेजक होता है। स्त्रियों की सुंदरता बढ़ाता है और बाल काले करता है।
अलसी को बुंदेलखंड में बिजरी कहा जाता है। कही तीसी भी कहा जाता है। कृषि वैज्ञानिकों ने अलसी की अनेक नई किस्में विकसित की है जो अधिक उपज देती हैं किंतु गुणवत्ता में देसी अलसी का कोई जोड़ नहीं। देसी अलसी के गुड़ मिलाकर बनाए गए लड्डू सर्दियों में खाए जाते हैं। अलसी के लड्डू रक्तचाप नियंत्रित रखते हैं कोलेस्ट्रोल को कम करते हैं और शुगर नहीं होने देते। गठिया रोगों के लिए रामबाण बताए जाते हैं।
अलसी के बीजों से 44 प्रतिशत तक तेल निकलता है। सौ ग्राम अलसी में 24 प्रतिशत प्रोटीन होती है। अलसी के पौधे के रेशे अनेक काम में आते हैं। जबकि अलसी के फूलों और बीजों के तेल से छापा खाने की स्याही बनाई जाती है। अलसी के तेल के साबुन भी बनाया जाता है।
खास बात यह थी अलसी के तने के रेशे से जो कागज बनाया जाता है उसी कागज से सिगरेट बनाई जाती है।
अलसी के बीजों से तेल निकालने के बाद जो खली बजती है वह पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग की जाती है।
मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश छत्तीसगढ़ राजस्थान बिहार और उड़ीसा में अलसी की खेती की जाती है। कहीं कहीं इसे तीसी भी कहते हैं। अलसी के पौधों के रेशों से मोटे कपड़े टाट पट्टी और झोले बनाए जाते हैं।
अलसी मुख्य रूप से भारत का ही पौधा है अर्जेंटीना चीन अमेरिका फ्रांस रूस नीदरलैंड बेल्जियम में भी अलसी पैदा होती है। अलसी की पैदावार में भारत का तीसरा स्थान है।
अलसी की 3 किस्में भारत में पाई जाती हैं जिनके फूल हल्के सफेद, नीले और धूसर रंग के होते हैं।
वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार अलसी के तेल में 27 प्रकार के कैंसर रोधी गुण पाए गए हैं। हृदय रोग, गुर्दा रोग, मूत्र रोगों में तो अलसी की दवाएं फायदा करती ही हैं इसके अलावा करीब 30 रोगों में भी तीसी किसी ना किसी रूप में फायदा करती है।
अलसी लिनेसी कुल का लाइनम वंश का पौधा है।

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