शिवचरण चौहान

सावन/ बरसात और बेले,/ मोगरे का गहरा नाता है। बरसात में जब बेला रात में फूलता है तो उसकी अदभुत महक,/ खुशबू सबको आकर्षित करती है। यहां तक कि नाग भी बेला के पौधे की जड़ों में डेरा डाल देते हैं।
बेले के फूल सुंदरियों,कवियों, शायरों को बहुत आकर्षित करते रहे हैं संस्कृत, हिंदी, उर्दू सहित सभी भारतीय भाषाओं के कवियों ने बेला/ मोगरा/ मालती,/ मल्लिका के फूलों पर गीत लिखे हैं। बनारस के नवगीत क़ार शंभूनाथ सिंह ने लिखा है _
_ बेला फूले आधी रात किसके लिए ।
तो नवगीत कार देवेन्द्र कुमार बंगाली ने लिखा__
एक फूल चांदनी
लगाया है आंगने
फूले तो आ जाना
एक फूल मांगने।।
सोम ठाकुर अक्सर कवि सम्मेलनों के मंच पर गाया करते थे
गजरा डार के भाभी गौरी लगे।
भाभी की उंगलियां निबौरी लगें।।
गोरी कलाई चंदन की बिलनिया

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शिवचरण चौहान की गीतिका है
बाग में झूले पड़े हैं।
मोंगरे फूले पड़े हैं।।
मै सजी बैठी हुई हूं
पंथ प्रिय भूले पड़े हैं।।

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इस तरह अनेक कवियों ने बेले के फूलों के गुण गाए है। युवतियां / महिलाएं बेले के फूलों के गजरे अपने बालों में सजाती हैं। उत्तर प्रदेश में जौनपुर बलिया लखनऊ कानपुर कन्नौज में मोगरे के गजरे बिकते हैं। जौनपुर , बलिया और कन्नौज में बेले की खेती होती है। कन्नौज में बेले के फूलों से इत्र बनाया जाता है। बेले का इत्र / मोगरे का इत्र अगरबत्ती, नहाने के साबुन, आदि अनेक वस्तुओं के निर्माण में प्रयोग में लाया जाता है। बेले के पंखुड़ियों का पानी नेत्र ज्योति बढ़ाने में सहायक है। बेले के पत्ते पीसकर मस्तक में लगाने पर सिर दर्द से राहत मिलती है।


बेला , भारत का मूल पौधा है। इसका वानस्पतिक नाम अरेबियन जैस्मीन है। संस्कृत में से मल्लिका, मालती के नाम से जाना जाता है तो हिंदी में इसे बेला मालती उर्दू में मोगरा नाम से जाना जाता है। बेले की श्वेत कलियां शाम को 6 बजे से खिलना शुरू होती हैं और सुबह होने तक सुगंध बिखेरती रहती हैं। अद्भुत सुगंध होती है बेला के फूलों में जो कीट पतंगों , सर्पों को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। लोग अपनी बालिकाओं का नाम बेला के नाम पर रखते हैं। बेला का एक अर्थ सुंदर होना होता है जबकि बेला को मुहूर्त का समय भी कहते हैं जैसे सुबह की बेला शाम की बेला।
जयपुर, अजमेर, कोटा ,बीकानेर के गजरे मशहूर हैं।
मैं मालन अलबेली
चली आई हूं अकेली बीकानेर से।
दरोगा बाबू बोलो
दरवाजा जरा खोलो।
फिल्मी गीत में मोगरे के फूलों की महिमा दर्शाई गई है।
बेला फिलीपींस का राष्ट्रीय फूल है तो इंडोनेशिया में इस फूल की बहुत महत्ता है। बेला भारत से ही दक्षिण एशिया के देशों में गया है और आज पूरी दुनिया में बेला के फूलों को आदर प्राप्त है।
बेला के फूल की मुख्य रूप से दो जातियां होती हैं।


१ मोंगरा २ मोतिया दोनों में ही सफेद फूल आते हैं। बरसात ऋतु में बेला की दाल को कहीं भी लगाया जा सकता है। गृह वाटिका में भी और गमलों में भी। मोगरा के पत्ते गोल हरे रंग के होते हैं इनकी मोतिया के कुछ लंबे। वैज्ञानिकों ने बेला के पौधे की कई जातियां प्रजातियां विकसित की हैं जो बेला की खेती के काम आती हैं। आधुनिक प्र जाति का मेला पूरे साल भर फूल देता रहता है किंतु जून-जुलाई से लेकर सितंबर अक्टूबर तक बेला के फूल स्वाभाविक रूप से पहुंचने पर आते हैं और अपनी सुगंध छोड़ते हैं। मेला के फूलों के गजरे पार्वती जी पहनती थीं। बेला के पौधे की झाडी 2 मीटर तक ऊंची हो सकती है। इसकी शाखाएं भी लंबी होती हैं हरि गोलाकार पत्तियां सभी को अपनी और आकर्षित करती हैं। इकहरी पंखुड़ी वाले फूल के अपेक्षा दोहरी पंखुड़ी वाले फूल ज्यादा पसंद किए जाते है। बेला के पौधे पर दिन में कलियां आती हैं जो शाम होते ही फूल बनकर सुगंध / महक बिखेरने लगती हैं। आयुर्वेद में बेला यानी मालती के अनेक औषधीय गुण बताए गए हैं।
बेला के फूलों की माला यानी गजरा शिमला की माल रोड से लेकर किसी भी शहर में शाम को सड़क पर खड़े माली अथवा लड़के बेंचते मिल जाएंगे। बेला के फूलों का पानी और बेला के फूलों का इत्र पूरी दुनिया में पसंद किया जाता है

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