महुआ के नीचे मोती झरें…

फूल महुआ के, महुआ की कूंच

शिवचरण चौहान

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अलमस्त वृक्ष है महुआ। पूरे फागुन भर संत जैसा सिर झुकाए खड़ा रहता है। एक एक पत्ता टपकाता रहता है। होली के रंग भी इसको विचलित नहीं करते। बसंत में इसको फागुन नहीं चढ़ता। इस पर तो चैत का रंग चढ़ता है। उत्पाती चैत का रंग।
बाप पूत का एके नाम।
पीती का पत्तोले नाम।
महुआ के पेड़ और महुआ के फूल को महुआ कहा जाता है जबकि महुआ के फल को गोलाइंदा कहा जाता है। रंग पंचमी के बाद महुआ अपने सारे पत्ते झरिहा देता है। और फिर महुये की सूखी डालों के शीर्ष पर कूंचें निकलने लगती हैं। इन कूंचों में सीकुर होते हैं। इन्हीं कूचों में महुआ के फूल विकसित होते हैं। पीले पीले रस भरे फूल चैत में विकसित हो जाते हैं। यही फूल सूरज निकलने से पहले चैत में टपकने लगते हैं । टप टप टप पेड़ से धूल में नीचे आकर गिरते लगते हैं। जहां पर महुआ के पहले से ही सूखे पत्ते पड़े होते हैं।
गर्मी की शुरुआत हो जाती है और सुबह सुबह एक नाग देवता अपने बिल से निकलते हैं की एक महुआ का फूल उनके फन पर टप्प से लगता है।
नाग ने मुख ऊपर उठाया और महूए से पूछा-
टप्प से टपाक से, कपार काहे फोरे!
अरे महुआ के फूल सुबह-सुबह तू मेरे सिर पर क्यों प्रहार किया ? मेरा मस्तक क्यों फोड़ा?
महुए ने कहा–
हुगरे से धुगरे से रात काहे डोले!!
अरे नागदेव तुम रात में काहे बिल से निकल पड़े इसीलिए अनजाने मैं तुम पर टपक पड़ा।
महुआ के फूल ,फूलते ही आस पास एक भीनी गंध फैल जाती है। महुये के फूलों की गंध पाकर रस के लोभी भंवरे, मधुमक्खियां,चिड़ियां फूलों पर आकर मंडराने लगती हैं। महुये के पेड़ों के बाग के बाग महकने लगते हैं।
महुआ मह मह महके फुलवरिया में।
भौरा घायल हो के घूमे महुअरिया में।।
झुंड के झुंड भंवरे महुआ के बागों में रस के लोभ में आकर गुनगुन गाने लगते हैं। गीतकार हरिवंशराय बच्चन का गीत अनायास होंठो से फूट पड़ता है –
महुआ के नीचे मोती झरे
महुआ के।
घड़ियां सुबरन ,दुनिया मधुवन।
उसको न जिसका प्रिय बिसरे
महुआ के ।।
सब सुख पाए, सुख सरसाए।
कोई न कभी मिलकर बिछुरे
महुआ के
महुआ के नीचे मोती झरे
महुआ के।।
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महुआ के मादक गंध अपनी और आकर्षित करती है।
महुआ एशिया महाद्वीप के प्रमुख रूप से भारत का आदि वृक्ष है। इसका वैज्ञानिक नाम माधूका इंडिका है । यह महुआ सपोटेसिए कुल का वृक्ष है। हिंदी बंगाली मराठी में इसे महुआ कहा जाता है तो संस्कृत में मधुका ,वनप्रस्थ इसका नाम मिलता है। गुजराती में महुडो, मलयालम में पूनम मधु संथाल में मातकोम,कन्नड में इप्पे, उड़िया में मोहुका, तमिल में ई लुपाई, तेलुगु में इप्पा कहते हैं। भारत में लगभग सभी प्रदेशों में महुआ के वृक्ष पाए जाते हैं। एक एक लाख पेड़ के महुआ के बाग भी पाए जाते हैं जिन्हें लखपेड़ा कहते हैं। उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़ मे महुये का बहुत महत्व है। पहाड़ों में यह 1000 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। महुआ एक पतझड़ी वृक्ष है जो 15 से 20 मीटर तक ऊंचा हो सकता है। लगभग आम के पेड़ की तरह है किंतु इसके पत्ते चौड़े और हरे होते हैं। पत्तों से पत्तल और दोने बनाए जा सकते हैं। मोटी मोटी डालों वाला महुआ एक छायादार वृक्ष है। महुआ के पत्ते, छाल, फूल और फल सभी आयुर्वेदिक औषधि बनाने के काम आते हैं। महुआ के फल से निकलने वाला गुल्लू का तेल खाने के काम आता है और गठिया रोग का रामबाण इलाज है। इससे साबुन भी बनता है। महुआ के टपके फूलों को सुखाकर कूटकर उससे लाटा और रोटियां बनाई जा सकती हैं। बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ के गरीब लोग महुआ के फूलों की रोटियां गरीबी के दिनों में खाया करते थे। बुंदेलखंड में एक लोकगीत है
ये हैं विपत कटावन महुआ
विपत्ति के समय में महुआ के फूल की रोटियां खाई जाती हैं। तब हर गांव गली खेत की मेड पर महुए के बाग के बाग होते थे और गांव की महिलाएं पुरुष सुबह टोकरी में महुआ बीनने जाते थे। महुआ के फूल बीन कर धूप में सुखा लिए जाते थे। तब भी महुआ के फूलों से शराब बनती थी और आज भी बनती है।
मधुर मधुर रस टपके महुआ चुए आधी रात।
वन भया मतवारा, सखि महुआ बीनन जात।।
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महुआ के फलों से निकला तेल साबुन बनाने के काम आता है और खाने के भी औषधि के रूप में भी इसका प्रयोग होता है। महुआ से चॉकलेट और बिस्किट भी बनाए जा रहे हैं। सन 18 82 और 1892 के बीच अंग्रेजों ने एक कानून बनाकर महुआ के बागों को उजाड़ने के आदेश दिए थे क्योंकि अंग्रेज जो शराब बनाते थे वह दुनियाभर में बेंचते थे और महुआ की कच्ची शराब उनके इस व्यवसाय में बाधक थी। आज भी महुआ की कच्ची शराब पर रोक है। इसे अवैध धंधा माना जाता है और सरकार आए दिन इसके खिलाफ अभियान चलाती रहती है।
भारतीय प्रायद्वीप में महुये के पेड़ की करीब एक दर्जन प्रजातियां पाई जाती हैं। महुआ की लकड़ी अनेक कार्यों में प्रयोग की जाती है। महुए के सेवन से बवासीर ठीक हो जाती है। महुआ के फूल दूध के साथ उबालकर पीने से अनेक लाभ होते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने महुए पर अनेक शोध की है। आज आम की तरह महुआ भी संकटापन्न वृक्ष हो गया है। लोगों ने भारी मात्रा में महुआ और आम के लाखों पेड़ काट डाले हैं। सरकार ने महुआ का वृक्ष काटने पर सजा का प्रावधान किया है फिर भी आज महुआ संकट में है। चैत से लेकर वैशाख तक महुआ के फूल आते रहते हैं। कुछ महुआ के वृक्ष घमहा होते हैं। धूप निकल आने के बाद दोपहर तक महुआ के फूल डालों से टपकते रहते हैं।
एक समय था जब बड़े सवेरे गांव की बालिकाएं महिलाएं और पुरुष महुआ के फूल बीनने जाया करते थे। महुआ के फूल छतों पर सुखाए जाते थे। बरसात के दिनों में यही महुआ कभी रोटी और कभी लाटा के रूप में खाया जाता था। आज महुआ, महुआ के फूल और महुआ के फल गोलैैंदा और फल से निकली गुठली गुल्लू सब इतिहास की बातें होती जा रही हैं। अब आयुर्वेदिक दवाओं की दुकानों पर महुआ का तेल और पंसारी के यहां महुआ के सूखे फूल महंगे दामों पर बिकते हैं।

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