दो टूक- संस्मरण
आर विक्रम सिंह
सेना के पूर्व कैप्टन, पूर्व आईएएस
जब मैं कोटद्वार में एसडीएम था तो ये नेताजी पहली बार मंत्री बने थे… पर्यटन मंत्री. तब तक उत्तराखंड अलग राज्य न बना था. मंत्री बनने के बाद पहली बार कोटद्वार में जलवागर हुए. वे पहाड़ों के पार अपने क्षेत्र श्रीनगर जा रहे थे. ट्रेन सुबह आयी. फिर भाजपा के स्थानीय जिंदाबादी व्यापारी नेताओं के साथ वे सिंचाई विभाग के डाकबंगले पर पहुंचे. नायब तहसीलदार व्यवस्था देख रहे थे. व्यापारियों ने नायब से अनायास रंगबाजी की कोशिश की, कि यह नहीं है वह नहीं है, क्या व्यवस्था की है आपने … चाय तक नहीं है सबके लिए.
नायब ने कहा, ‘चाय व्यवस्था आठ दस लोगों के लिए है. यहां तो सौ लोग हैं. इतना कौन करेगा.’
एसडीएम कहां हैं ? क्यों नहीं आया ? किसी ने कहा.
‘जबान संभालो, वरना खींच लूंगा.’ नायब तहसीलदार भी वहीं पहाड़ों के रावत थे. तो गर्मागर्मी बढ़ गयी. लोगों ने मंत्री के सामने उनकी पेशी करा दी. कहां हैं एसडीएम ? मंत्री ने डांट फटकार भी की. नायब ने कह दिया, ‘साहब बीईएल फैक्ट्री गये हैं. कुछ बवाल हो रहा है वहां.’
नायब ने अपना स्टाफ बिथड्रा किया और जिम्मेदारी पर्यटन अधिकारी के हवाले कर गुस्से में हमारे पास आवास पर आ गया. ‘अब सर हमलोग बाजार के इन बनियों के सामने डांटे जाएंगे..?’, मैंने बात सुनी. मुझे भी क्रोध आ गया. तब तक सीओ साहब मोहन सिंह बंग्याल आये. वे भी पहाड़ के ही थे.
‘मंत्री आया है, चला जाये.’ मंत्री से उनका पहले का याराना था. नायब ने उनसे भी बात बताई. जाहिर है, वे भी भड़क गये.
‘कोई नहीं जायेगा. जाने दो इसे. चलिए, नायब साहब की बात रखने के लिए बीईएल ही चला जाये.’ सीओ बाले.
हम लोगों ने जीप उठाई. ‘स्थल निरीक्षण’ में चले गये. वायरलेस पर लोकेशन बता दी गयी.
व्यापारियों ने सुना और भड़क कर वे सब मेरे खिलाफ माहौल बनाने लगे. लालचंद बहरानी एक सुलझे हुए व्यापारी नेता थे. उन्होंने स्थिति संभाली. व्यवस्था आदि कराई.
‘देखिये, दिमाग खराब है इन लोगों का, मिलने तक नहीं आये. सीओ भी यहीं हैं. नायब आया था, वह भी छोड़कर चला गया.’ मंत्री महोदय दांत पीस कर आगे चले गये.
थोड़ी देर बाद जब हमलोग वापस आए तो लालचंद बहरानी व पर्यटन अधिकारी घर पर बैठे मिले.
‘आइये सर आइये.’ बहरानी जी ने हंसते हंसते सारा किस्सा बयान किया. ‘आपके नायब तो गजब के हैं. झटक कर बाहर आ गये. वो तो मैं आ गया था, संभाल लिया. सब चाय नाश्ते की व्यवस्था करवा दी. मंत्री जी आगे चले गये तब आया हूं.’
‘हमारे व्यापारी भी तो एक से एक हैं. एक कहता है, अरे, बीईएल तो शाम को जाते हैं साहब लोग पार्टी करने. तो आज सबेरे सबेरे चले गये !’ फिर बहरानी हो हो करके हंसने लगे.
दूसरे दिन सीओ साहब श्रीनगर में मंत्री से मिले. मंत्री मुंह फुलाए हुए थे. अपने सीओ साहब कहां बरदाश्त करने वाले थे. आप इन व्यापारियों के चढ़ाने पर नायब तहसीलदार से ऐसे बात कर रहे हैं जैसे कि वो चपरासी हो. कौन सौ लोगों की व्यवस्था कहां से करायेगा ? बताइये. कितना फंड है पर्यटन में ? सीओ बोले.
‘आपके पर्यटन अधिकारी ने रद्दी अखबार बेच कर चाय की व्यवस्था कराई थी. वह एसडीएम साहब से रोया गाया तो उन्होंने कानूनगो नायब तहसीलदार को साथ लगा दिया. क्या हम लोग बरात की व्यवस्था करेंगे ? आगे से पार्टी वालों को बता दीजिए, वे देखें. प्रोटोकाल की बात करेंगे तो वह मुख्यमंत्री का होता है, राज्यमंत्रियों का नहीं. आप से मित्रता है तो आ जाते हैं वरना कोई आये जाएगा नहीं.’
सीओ तैश में थे.
मंत्री ने कहा, ‘अरे, नाराज न होइये. आपके तो वैसे भी चुनाव में बड़े एहसान हैं हम पर. एसडीएम साहब का तो हम चाह कर भी कुछ न कर पाएंगे, सीओ साहब.’
‘क्यों ?’ सीओ ने पूंछा.
‘उनके मामाजी तो हमारी पार्टी के जनरल सेक्रेटरी हैं.’
मंत्री ने बताया. ‘उनका तो उल्टा हमें सहयोग चाहिए होगा न.’
सीओ साहब ने बाद में यह सब बताया. तो वापस लखनऊ जाते समय मंत्री जी से हमारी डाकबंगले में बड़ी अच्छी सी मुलाकात हुई. बहरहाल कुछ महीनों के बाद हमारा पूरा बैच दो साल पूरा करके पहाड़ों से मुक्त होकर मैदानों की ओर गामजन हो गया.
मंत्री के बहुत से कार्यकलाप, रंग-बिरंगे समाचार, किस्से सामने आते रहे. आप सब जानते ही होंगे. ये मंत्री जी हरख सिंह रावत थे जो नीचे इस समाचार में भी जज साहब को हैरान करते हुए तशरीफ लाए हुए हैं.