प्रभाकर सिंह

( जिला आपदा विशेषज्ञ बाँदा)

जिस पर विचार करना हमारा सामाजिक कर्तव्य है…..
एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति, इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को “दोने पत्तल” पर परोसने का बड़ा महत्व था एक समय तक रहा, कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर पूरे भारत वर्ष में परोसा जाता था
ये प्रथा आज भी हमारे हिमाचल प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में आज भी जारी है, परंतु आज आधुनिकता ने इसे कई क्षेत्रों में खत्म करना शुरू कर दिया है और उसकी जगह पर्यावरण के प्रतिकूल प्रभाव देने वाले लैमिनेटेड कागज तथा प्लास्टिक से बनी पत्तलों ने ले लिया है जो आज के समय में बहुत ज्यादा घातक है।
जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी आधुनिकता के युग ने गुमनाम जैसी कर दी।
क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था?
नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये “बुफे”जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नहीं सकती थी।
जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है| तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है? लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है|
जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए| जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए| पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है| केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है तथा मां लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त करता है ,
इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है|
हमारे हिमाचल प्रदेश में tour नामक बेल के पत्तों से पत्तल बनाई जाती है, जो औषधीय गुणों के साथ अत्यंत शुभ मानी जाती है।
पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है|
पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है|
पत्तले #प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है|
अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को #रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है|

अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे #प्रदूषण कम होगा|
डिस्पोजल के कारण जो हमारी #मिट्टी, नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा|

जो मासूम #जानवर इन #प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा|

सबसे बड़ी बात पत्तले, डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है|

ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी #संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का #विश्व मे कोई मुकाबला नही है…..
हमारी वैदिक संस्कृति विश्व में सबसे सटीक शास्त्रोक्त एवं ज्ञान से परिपूर्ण है एतएव अपनी संस्कृति भी सुरक्षित रखें और अपने समाज का भी उत्थान करें।

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