• आलोक कुमार सिंह

(सामाजिक चिंतक एवं स्वतंत्र लेखक)

यदि हम अपने दैनिक जीवन में नजर डालें तो तमाम कुरीतियों, ढोंग, पाखंड, अवैज्ञानिक क्रियाकलाप और सोच नजर आता है। यह सोच एक दो दिन में विकसित नहीं हुआ है, यह तो सदियों से रोपित, पुष्पित और पल्लवित होकर आज पुष्ट रूप में हुआ है। यदि कोई आज का युवा या लगभग 60 से लेकर 100 वर्ष का जन अपने आत्म अनुभव, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तार्किक क्षमता व कसौटी के दम पर ढोंग, पाखंड, अवैज्ञानिक क्रियाकलाप और उसके पोषक, प्रसार कर्ताओं के सिंडिकेट के विरुद्ध लड़ने, इस विषय पर लेखन करने का साहस उठाता है तो निसंदेह यह बहुत बड़े हिम्मत का द्योतक है, परन्तु सदियों से प्रचलित, अटल भाव धारण कर चुकी कुरीतियों, ढोंग, पाखंड से सीधे सीधे टक्कर लेना समस्यात्मक कार्य है, क्योंकि मानसिक गुलामी शारीरिक गुलामी से ज्यादा घातक होती है। ठीक वैसे ही जैसे यदि किसी व्यक्ति ने अपने घर में कृत्रिम वातावरण में तोता पाल रखा है और वह उस तोते का पालन-पोषण कर यदि घर के मुक्त वातावरण में उसे छोड़ भी दिया जाता है तो वह तोता उड़ता या भागता नहीं है भले ही वह अन्य तोतो को उड़ता, चहचहाता, बालकनी, छत पर देखता सुनता है लेकिन वह मानसिक रूप से उस परिवार के साथ तालमेल बैठा चुका और वही जीना और मरना अपनी नियती मार चुका है अपेक्षाकृत स्वछंद वातावरण में विचरण करने। ऐसे अनेकों उदाहरण हमारे समाज में भरे पड़े है। कुछ ऐसा ही मानव के साथ भी है जब उनकी वैज्ञानिक दृष्टिकोण, चेतना और तार्किक क्षमता की धार कुंद हो या कुरीतियों, ढोंग, पाखंड, अवैज्ञानिक क्रियाकलाप रूपी रसरी का असर आवत जात से सील पर पडत निशान स्वरूप अमिट छाप छोड़ दिया हो।
समाज में यह आम अवधारणा है कि यदि गंतव्य को निकलते या मार्ग में यदि बिल्ली आमुख व्यक्ति से पहले अपने गंतव्य को मूव कर जायें तो व्यक्ति या व्यक्ति के साथ बैठे सफर करते हुए कोई न कोई शुभ अशुभ का विचार कर बोल पड़ता है कि बिल्ली रास्ता काट गयी। जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तार्किक क्षमता का प्रयोग कर मानवीय दृष्टिकोण से यदि हम सोचें तो हम पायेंगे कि गंतव्य के लिए निकला व्यक्ति और बिल्ली दोनों अपने अपने मार्ग अपने गंतव्य, उद्देश्य के लिए निकले थे। यह स्थिति तब और हास्यास्पद हो जाती है जब गंतव्य को मूव करते समय अचानक छींक आ जाना, किसी जाति विशेष के साथ भी जोड़ दिया जाता है जो मानवीय दृष्टिकोण से कदापि उचित नहीं है।
आप सोचें कि यदि गंतव्य मार्ग मूमेंट के दौरान यदि बिल्ली से पहले आप बिल्ली के आगे और पहले मार्ग से गुजर जाये तो क्या बिल्ली ने कभी कहा मानव ने रास्ता काट दिया, शुभ गंतव्य प्रस्थान अशुभ संकेत बन गया। जबकि यथार्थ सत्य है कि दोनों अपने अपने गंतव्य को जा रहें थे।
इस लिए शुभ और अशुभ सब हमारे उर्वर मनो मस्तिष्क की उपज है। जो लाभकारी हो जाएं वह शुभ है और जो कष्टकारी हो जाएं वह सब अशुभ ही अशुभ है।

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