डॉक्टर हर्षित गुप्ता
कृषि वैज्ञानिक
चंद्र शेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर उत्तर प्रदेश
- कृषि में बीज के गुणवत्ता का विशिष्ट महत्व है क्योंकि हमारे यहाँ फसलों की आवश्यकतानुसार सबसे अच्छी जलवायु होते हुए भी लगभग सभी फसलों का औसत उत्पादन बहुत ही कम है। जिसका प्रमुख कारण प्रदेश के कृषकों द्वारा कम के गुणवत्ता वाले बीजों का लगातार प्रयोग है। जिससे फसलों में दी जाने वाली अन्य लागतों का भी हमें पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है। फसलों में लगने वाले अन्य लागत का अधिकतम लाभ अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग करके ही लिया जा सकता है। उच्च गुणवत्ता के प्रमाणित बीज (Certified Seed) के प्रयोग से ही लगभग 20.25 प्रतिशत उत्पादकता या उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
- किसान भाईयों को चाहिए कि वे अपनी फसलों के बीज जैस-धान, गेहूं, समस्त दलहनी फसलें एवं राई-सरसों तथा सूरजमुखी को छोड़कर समस्त दलहनी फसलों का बीज प्रत्येक 3 वर्ष में बदल कर बुवाई की जानी चाहिए। इसी प्रकार ज्वार, बाजरा, मक्का, सूरजमुखी, अरण्डी एवं सरसों की फसलों में प्रत्येक 3 वर्ष पर बीज बदल कर बुवाई की जानी चाहिए।
- उस बीज को उत्तम कोटि का माना जाता है जिसमें आनुवांशिक शुद्धता शत-प्रतिशत हो अन्य फसल एवं खरपतवार के बीजों से रहित हो, रोग व कीट के प्रभाव से मुक्त हो, जिसमें शक्ति और ओज भरपूर हो तथा उसकी अंकुरण क्षमता उच्च-कोटि की हो, जिसमें खेत में जमाव और अन्ततः उपज अच्छी हो।
- किसान भाईयों से अनुरोध है कि अपने पुराने बीजों को बदलते हुए प्रमाणित बीजों (Certified Seed) से बुवाई करें, जिससे उनकी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हो। शोधित बीज (Certified Seed) बच जाने पर पुनः प्रयोग करें। बीज पुनः जमाव परीक्षण करके मानक के अनुरूप होने पर पुनः बोया जा सकता है।
- देश एवं प्रदेश की लगभग 60.70 प्रतिशत जनसंख्या की जीविका कृषि पर आधारित है। जिसके आर्थिक एवं सामाजिक स्तर में वांछित सुधार केवल खेती के सुदृढ़ीकरण से ही संभव हैं। इन उन्नतिशील प्रजातियों के उच्च गुणवत्तायुक्त बीजों का टिकाऊ कृषि उत्पादन में उच्च स्थान है। कृषकों को मात्र नवीनतम प्रजातियों के प्रमाणित बीज (Certified Seed) ही उपलब्ध करा देने से उत्पादन में 20 से 25 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।