गीतेश अग्निहोत्री, पत्रकार
बांग्लादेश में हसीना सरकार के विरोध में शुरू हुआ आंदोलन उनकी सरकार के पतन के बाद वहां के मूल निवासी अल्पसंख्यक हिंदुओं का उत्पीड़न शुरू हो गया है। भारत सरकार तो बांग्लादेश की पूर्व पीएम हसीना वाजेद को सुरक्षा मुहैया करा रही है। भारत से जाने तक वह हिंडन एयरवेज पर रुकी हुई है। भारत सरकार ने अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा पर चिंता जता चुका है। साथ ही हालात पर निगाह बनाए हुए है। लेकिन भारत में अल्पसंख्यकों के मामलों को लेकर विश्व भर में जितनी प्रतिक्रिया होती है। उस तरह की चिंता विश्व समुदाय ने बांग्ला देश के अल्प संख्यकों के प्रति हो रही हिंसा पर नही जताई है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने जरूर चिंता जताई है। पड़ोसी देश भारत में भी राजनीतिक दल विश्व भर में अल्पसंख्यकों के मामलों को लेकर विरोध जताते है। लेकिन बांग्लादेशी अल्पसंख्यक हिंदुओं के मामले में इक्का दुक्का ही विरोध के स्वर उनकी तरफ से उभरे है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुले मंच से इस बात को लेकर घेरा है। लोक सभा के सांसद ओवैसी ने शपथ लेते समय गाजा की हिंसा पर विरोध जताया था। वैसा बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं की हिंसा पर विरोध न जताने पर उनको भी घेरा जा रहा है।हालाकि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ने दुकानों को लूटने घरों पर हमने की घटनाएं सामने आ रही है बांग्लादेश में मोहम्मद युनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन भी हो गया है। इसी के साथ वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं में अपनी सुरक्षा को लेकर आंदोलन भी शुरू कर दिया है। बांग्लादेश की अल्पसंख्यक हिंदुओं ने हाल ही में हुई हिंसा की घटनाओं की जांच कर कड़ी कार्रवाई करने अल्पसंख्यक आयोग का गठन करने नुकसान की भरपाई करने सहित कई मांगों को लेकर आंदोलन तेज कर दिया है।लेकिन देखना यह है कि बांग्लादेश में भेदभाव के शिकार अल्पसंख्यक हिंदुओं की अंतरिम सरकार कितनी सुनती है। और उनकी सुरक्षा के कितने उपाय करती है। दूसरी तरफ बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच पश्चिम बंगाल सीमा पर बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक हिंदू भारत में आने की आस लगाए हुए सीमा पर बैठे हुए हैं। इधर बीएसएफ की कड़ी निगेहबनी के चलते किसी का भारत में प्रवेश मुश्किल है। बांग्ला देश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के उत्पीड़न व भेदभाव का पुराना इतिहास रहा है। 1971 में बांग्लादेश के गठन के पहले वा बाद में अल्पसंख्यक हमेशा निशाने पर रहे है। बांग्लादेश,पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर लगातार उत्पीड़न भेदभाव की घटनाएं होती रहती है। लगातार उनकी संख्या वहां घटती जा रही है। कट्टरपंथी उनके खिलाफ माहौल बनाते रहते है। जिम्मेदार सरकारें उन पर कार्यवाई के नाम पर दिखावा करती रहती है। जिससे उनके हाल और खराब हो रहे है। अफगानिस्तान में हिंदुओ,सिक्खो व अन्य अल्पसंख्यक लोग उंगलियों पर गिनती के बचे है। जब भारत सरकार उत्पीड़ित होकर भारत आए इस तरह के अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 कानून लाती है। तो उस पर विपक्ष हमलावर होकर भेदभाव वाला कानून बताता है।हालाकि बांग्लादेश की हिंसा जैसे माहौल में भारत सरकार के कानून सही साबित करने का काम किया है। दूसरी तरफ बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदुओं ने हालात से लड़ने का संकल्प लिया है। डरकर भागने की बजाय मुकाबला करने के लिए सड़क पर उतर पड़े है। बड़ी संख्या में उत्पीड़ित हिंदू अल्पसंख्यकों ने सड़क पर उतरकर अपनी मांगे भी अंतरिम सरकार के सामने रखी है। आशा है अंतिम सरकार भी अपने अल्पसंख्यक नागरिकों के अधिकारों के लिए सजगों कर कार्रवाई करेगी इंसान में शामिल लोगों को पकड़ कर कानून सम्मत कार्रवाई के साथ ही नुकसान की भरपाई भी करेगी।