डॉ शैलेंद्र प्रताप सिंह
मौसम परिवर्तन आज के समय में एक वैश्विक समस्या बन चुका है, जिसका प्रभाव कृषि क्षेत्र पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। विशेषकर गर्मियों के मौसम में, जब तापमान अत्यधिक बढ़ जाता है और वर्षा का प्रतिरूप अनियमित हो जाता है, तो फसलों की पैदावार और गुणवत्ता पर नकारात्मक असर पड़ता है। ऐसे में, किसानों को मौसम परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और अपनी खेती को अनुकूलित करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।
सबसे पहले, किसानों को अपनी फसलों की बुवाई के समय में बदलाव करना होगा। गर्मियों में तापमान के बढ़ने के साथ-साथ, फसलों को पानी की अधिक आवश्यकता होती है। इसलिए, किसानों को ऐसी फसलों का चयन करना चाहिए जो कम पानी में भी अच्छी पैदावार दे सकें, जैसे कि बाजरा, ज्वार, मूंग, मोठ आदि। साथ ही, वे अपनी फसलों की बुवाई का समय भी थोड़ा आगे या पीछे कर सकते हैं, ताकि फसलें अत्यधिक गर्मी और सूखे से बच सकें।
दूसरा महत्वपूर्ण कदम है सिंचाई और जल प्रबंधन में सुधार करना। गर्मियों में पानी की कमी एक बड़ी समस्या होती है, इसलिए किसानों को अपनी सिंचाई प्रणाली को अधिक कुशल बनाना होगा। वे बूंद-बूंद सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं, जिससे पानी की बचत होगी और फसलों को पर्याप्त नमी मिल सकेगी। इसके अलावा, मल्चिंग और वर्मीकम्पोस्ट जैसी तकनीकों से मिट्टी में नमी को बनाए रखने में भी मदद मिल सकती है।
तीसरा उपाय है फसल विविधीकरण और मिश्रित खेती को अपनाना। एक ही प्रकार की फसल को लगातार उगाने से मिट्टी की गुणवत्ता घट सकती है और कीट-रोगों का प्रकोप बढ़ सकता है। इसलिए, किसानों को अलग-अलग प्रकार की फसलों को एक साथ लगाना चाहिए, जैसे कि अनाज के साथ दलहन, तिलहन या सब्जियां। इससे न सिर्फ मिट्टी की उर्वरता बनी रहेगी, बल्कि फसलों के नुकसान का जोखिम भी कम होगा।
चौथा सुझाव है कि किसान जैविक खेती और प्राकृतिक खाद के उपयोग को बढ़ावा दें। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो सकती है और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंच सकता है। वहीं, जैविक खाद जैसे कि गोबर, हरी खाद और कम्पोस्ट का उपयोग मिट्टी को उपजाऊ बनाने और नमी को बनाए रखने में मददगार होता है। साथ ही, नीम के पत्ते, लहसुन, प्याज जैसे प्राकृतिक कीटनाशकों से फसलों को कीड़ों से बचाया जा सकता है।
अंत में, सरकार और कृषि संस्थानों को भी किसानों की मदद करने के लिए आगे आना होगा। सरकार किसानों को मौसम परिवर्तन के अनुकूल बीज, प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण उपलब्ध करा सकती है। साथ ही, सूखा या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान किसानों को वित्तीय सहायता और राहत पैकेज भी दिए जाने चाहिए। कृषि अनुसंधान संस्थान मौसम परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन कर सकते हैं और किसानों को उपयुक्त समाधान सुझा सकते हैं।
निष्कर्ष के तौर पर, मौसम परिवर्तन का खेती पर प्रभाव एक गंभीर चिंता का विषय है, लेकिन समुचित योजना, आधुनिक तकनीकों और जैविक पद्धतियों को अपनाकर इससे निपटा जा सकता है। यदि किसान, सरकार और समाज मिलकर प्रयास करें, तो हम गर्मियों की चुनौतियों का सामना करने और खेती को लाभदायक बनाने में सफल हो सकते हैं।