(1973 CrPC संशोधन और राजनीतिक अपराधीकरण पर आर विक्रम सिंह का अनुभव आधारित लेख)

1973 में हुए सीआरपीसी संशोधन ने अनायास राजनीति के क्षेत्र में अपराध की दुनिया से आने वालों का मार्ग निष्कंटक कर दिया था, यद्यपि संशोधन का उद्देश्य यह नहीं था. बल्कि यह तो संविधान के आदर्शों से प्रेरित था. लेकिन इस संशोधन ने जिला मजिस्ट्रेट की अपराध नियंत्रण के प्रशासन में भूमिका नगण्य कर दी. पुलिस कप्तान खुदमुख्तार हो गये. यह नियंत्रण जुडीशियरी को चला गया. पुलिस और जुडीशियरी में निकटता आई. जुडीशियरी का शांति-व्यवस्था से कोई सम्बंध नहीं होता और यह जिम्मेदारी जिला मजिस्ट्रेट की बनी रही लेकिन पुलिस जो शांतिव्यवस्था की मुख्य इंसट्रूमेण्ट है जिलों में एक समानांतर शक्ति केंद्र के रूप में विकसित होने लगी. पुलिस कप्तान जिला मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ की श्रेणी से निकल कर भाईसाहब की श्रेणी में आ गये. जिला मजिस्ट्रेट जनता जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह होता है, शिकायतों का निस्तारण करता है, विकास कार्यों की जिम्मेदारी उठाता है. पुलिस कप्तान इस भूमिका में नहीं होता. वह पुलिस से जुड़ी शिकायतें देखता है.


हमने देखा है कि माफिया छोटे अपराधों से आगे बढ़ता है. आपको आश्चर्य होगा कि बहुत से अपराध से राजनैतिक बने, बड़े नेताओं का सफर साइकिल चोरी व छिनैती से प्रारंभ हुआ था. इन अपराधों का अर्थात ‘पेटी क्राइम’ का निस्तारण जुडीशियल मजिस्ट्रेटों के न्यायालय में त्वरित गति से होता था और कन्विक्शन रेट बहुत ऊंचा था. क्योंकि वे जिला मजिस्ट्रेट के नियंत्रण में हुआ करते थे. उस जमाने में ये माफिया बड़े होने से पहले ही चिन्हित होकर सजायाफ्ता हो जाया करते थे और इन अपराधियों की राजनैतिक संभावना पर पूर्ण विराम लग जाता था. तब विकास दुबे के मुकदमे 60 तक न पहुंचते. पांच-सात तक ही वह सजायाफ्ता होकर अपनी औकात में सीमित हो जाता. गांव में खेती दुकानदारी कर रहा होता. उसके द्वारा मार डाले गये वे सब लोग जिंदा होते. आज जो अपराध की दुनिया के सिरमौर, माननीयों की श्रेणी में आ चुके हैं उनका भी यही हस्र हुआ होता. एक नेता तो जिन्हें पुलिस कभी एनकाउंटर के लिए खोज रही थी, कार के पायदान पर दमसाधे लेटे छह घंटे भागते हुए किसी प्रकार प्रदेश की सीमा पार कर सके थे. वे उतने बड़े होने से पहले ही निस्तारित हो गये होते. फिर माफियाओं के प्रेमी वे नेता बहुत आगे गये. खुला मैंदान देख कर अपराधी-माफिया अपनी जाति के नेता भी बनने लगे. इसकी बानगी आप गोरखपुर के ठाकुर-बाम्हन माफिया टकराव में देख सकते हैं. सन् 1973 से पूर्व की राजनीति में व उसके बाद की राजनीति में अपराधी बाहुबलियों की संख्या की तुलना करें तो हम पाएंगे कि जो पहले अपवाद था, 1973 के बाद वह नियम बन गया है. स्थितियां यह हैं कि सदनों में अपराध की पृष्ठभूमि से आने वाले एक चौथाई/तिहाई बताए जा रहे हैं.

अब सवाल है कि ऐसा किया क्यों गया ? पहला, संविधान के आदर्श separation of executive n judiciary का अनुपालन होना था. दूसरा उद्देश्य जिला मजिस्ट्रेट की शक्ति को सीमित करना था, क्योंकि यह मुख्यमंत्रियों को प्रकारांत से बहुत शक्तिशाली बनता था. अब संयुक्त सरकारों का वक्त आ गया था. विभागीय मंत्री सशक्त हो रहे थे. विभागों के फील्ड अधिकारियों को जिलाधिकारी के नियंत्रण से बाहर करना, उन्हें अपने हितसाधन के लिए जरूरी हो रहा था. जिलाधिकारी व पुलिस कप्तान को कमजोर भी करना था जिससे वह स्थानीय बलशाली नेताओं का आज्ञाकारी बन सके. फलतः जिलाधिकारी व कप्तान समानांतर अधिकारियों में तब्दील हो गये. ‘भाई, आप कप्तान साहब के पास जाइये.’ यह कलक्टरों का तकियाकलाम हो गया. जिले के अलोकप्रिय हो रहे नेता बूथों पर कब्जे के द्वारा चुनाव जीतने पर बहुत भरोसा कर रहे थे. उनके दबंग समर्थक कार्यकर्ता मुकदमों में फंसते जा रहे थे. यदि ये सब जिलामजिस्ट्रेट के क्षेत्राधिकार से बाहर हो जाएं तो उन समर्थकों को बड़ी रिलीफ मिलती. इससे ऐसा हुआ भी. अब इनकी सुनवाई जुडीशियरी के नियंत्रण में आ गई. वहां जिला मजिस्ट्रेट की कोई भूमिका ही नहीं थी. आप पायेंगे कि 1973 के बाद बूथ कैप्चरिंग एक सामान्य व्यवस्था हो गई थी. नेता लोग बहुत से बाहुबली पालते थे. दो चुनावों के बाद ये बाहुबली स्वयं समझदार हो गये और नेताजी दरकिनार कर दिये गये. इस सबका परिणाम आखिरकार यह निकला कि छिनैतों, साइकिल चोरों, शराब तस्करों, लोकल गुण्डों के राजनीति में आने और फिर बड़े होते जाने का रास्ता साफ हो गया.


समकालीन राजनीति में एक ठेकेदार-अपराधी क्लास विकसित हुआ जो अधिकारियों को दबाव में लेकर बलपूर्वक हस्ताक्षर कराकर धन उगाही में माहिर था. पुलिस-अपराध का एक कुचक्र भी प्रायः अस्तित्व में आता देखा गया है जिसमें अपराध की राजनीति पुलिस को मोहरा बना लेती है.1973 के इस संशोधन ने राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को रोक देने की जिला मजिस्ट्रेट की क्षमता व अधिकार को समाप्त कर दिया. अब परिणाम हमारे सामने है. अपराध राजनीति का सबसे आसान रास्ता बन गया. जिला मजिस्ट्रेट के अधिकार कम होने से बने नो मैंन्स लैण्ड ने एक अनियंत्रित क्षेत्र उत्पन्न कर दिया जिसमें काबिज हुए अपराध और स्थानीय राजनीति के संयोजन ने सारे देश में हमारे राजनैतिक परिदृश्य को आज बदल कर रख दिया है

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