प्रयागराज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृत एवं पुरातत्व विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला में “भारतीय इतिहास लेखन में संस्कृत साहित्य की भूमिका” विषय पर सह आचार्य डॉ. रमाकांत सिंह ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतीय इतिहास के अध्ययन में संस्कृत साहित्य की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इतिहास बोध को राष्ट्र की अस्मिता से जोड़ने के लिए हमें अपने विपुल संस्कृत साहित्य की ओर देखना होगा। प्रत्येक भाषा अपने शुद्धतम रूप में पीढ़ियों के ज्ञान को संचित रखती है और संस्कृत साहित्य भी इसका अपवाद नहीं है।
डॉ. रमाकांत ने निरूक्त, महाभारत और रजतरंगिणी के अंतर्निहित तथ्यों के आधार पर इतिहास की पाश्चात्य अवधारणा को संकुचित बताया। उन्होंने प्राचीन संस्कृत साहित्य के ऐतिहासिक संदर्भों का विश्लेषण करते हुए भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में इसकी महत्ता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि साहित्य और अभिलेखीय साक्ष्यों के विश्लेषण में सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि साहित्य की संरचनात्मक और काल्पनिक प्रकृति यदा-कदा घटनाओं का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन प्रस्तुत करती है।
पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. अनामिका राय ने संस्कृत साहित्य, विशेषकर कालिदास की रचनाओं में स्त्री पात्रों की विशिष्टता के आधार पर सामाजिक इतिहास लेखन में नवीन स्थापनाओं की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. हर्ष कुमार ने की, जबकि संचालन और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. गार्गी चटर्जी ने किया। इस अवसर पर विभाग के डॉ. मुकेश कुमार सिंह, डॉ. जितेंद्र सिंह, डॉ. अमित सिंह, डॉ. शैलेश कुमार यादव, डॉ. रीमा कुमारी, डॉ. आशुतोष कुमार सिंह, डॉ. मोहना आर., डॉ. अरविंद, डॉ. सुचित्रा मजूमदार, डॉ. रविंद्र कुमार, शोधार्थी और परास्नातक के विद्यार्थी उपस्थित रहे।