डाक टिकट बताएगा कौन थे पद्मनाथ सिंह ? जो अंग्रेजों से लड़े, विधायक बने, फिर हाईकोर्ट के वकील बनकर लड़ते रहे…

-110 वीं जयन्ती पर यूपी के मऊ जिले के पगरहा गाँव में जारी किया गया विशेष डाक कवर

  • केन्दीय मन्त्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल ने किया कवर का विमोचन
  • सुप्रीम कोर्ट बार के अध्यक्ष, हजारों ग्राम वासियों और वकीलों ने किया नमन
  • अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी तो पिता का अंतिम संस्कार नहीं कर पाए
  • आजाद भारत की सरकार से कुछ न लिया, यूपी की सरकार को दे गए घर
  • बेटे से अमरेंद्र नाथ से कह गए वकील बनकर लड़ना, यूपी बार काउंसिल के सदस्य है अमरेंद्र नाथ सिंह

विशेष संवाददाता, लखनऊ.
कुछ क्रांतिकारियों की बहादुरी की तमाम कहानियाँ आपने सुनी होंगी. पर अनेक लोगों की दास्ताँ जिले-कस्बों में ही सिमट गई. अब आजादी के अमृत महोत्सव में तमाम वीरों के योगदान सामने आ रहे हैं. आजमगढ़ ( अब मऊ जिला) के गाँव पगरहा के एक ऐसे ही महापुरुष का स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान, आजादी के बाद कमजोर तबके के लिए उनका समर्पण अब देश- दुनिया के लोग जान सकेंगे. इस महापुरुष का नाम है पद्म नाथ सिंह. 25 अगस्त को स्वर्गीय पद्मनाथ सिंह की 110 वीं जयन्ती थी. इस मौके पर उनके गाँव में केन्दीय मन्त्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल ने पद्मनाथ सिंह के जीवन पर केंद्रित विशेष डाक कवर (टिकट) का विमोचन किया. इस कवर को उत्तर प्रदेश फिलेटिलिक सोसाइटी के अध्यक्ष महेश प्रताप सिंह और महासचिव डॉ. आदित्य सिंह ने खासतौर पर तैयार कराया और इसका कांसेप्ट नोट हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता
अमरेंद्र नाथ सिंह ने तैयार किया.
स्वर्गीय पद्मनाथ सिंह एक बहु आयामी प्रतिभा और साहस- समर्पण के पर्याय थे. उनके पुत्र और उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य और इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अमरेंद्र नाथ सिंह ने उनकी स्मृति में दो दिवसीय चिकित्सा शिविर भी शुरू कराया.
स्वाधीनता संग्राम सेनानी, विधायक और हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रहे पद्म नाथ सिंह की 110 वीं जयंती का यह आयोजन नगर पालिका परिषद मऊ में आयोजित किया गया. देश- प्रदेश के अनेक जिलों के वकील इस मौके पर जुटे.डाक विभाग और फ़िलेटिलिक सोसाइटी द्वारा तैयार कवर/ डाक टिकट का विमोचन करने के लिए दिल्ली से केन्द्र सरकार के राज्य मंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल खास तौर पधारे.सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ.आदीश अग्रवाल ने समारोह की अध्यक्षता की. इस मौके पर मन्त्री एसपी सिंह बघेल ने विस्तार से स्वर्गीय सिंह के जीवन से जुड़े प्रसँग, उनकी कहानी बताई- दोहराई. पूर्व सांसद डॉ.संतोष कुमार सिंह, नगर पंचायत अध्यक्ष मनोज राय, नगर पालिका चेयरमैन अरशद जमाल, ब्रिगेडियर पी एन सिंह, आईएमए के अध्यक्ष डॉ.एनपी सिंह, डॉ.पीएल गुप्ता, फिलेटिलिक सोसायटी के प्रदेश अध्यक्ष महेश प्रताप सिंह, महासचिव डॉ.आदित्य सिंह, बार काउंसिल उपाध्यक्ष अनुराग पाण्डेय, सिविल कोर्ट बार एसोसिएशन मऊ के
शमसुल हसन अध्यक्ष, हरिद्वार राय महामंत्री उपस्थित रहे.

विस्तार से जानिए पद्म नाथ सिंह को-

25 अगस्त ,1913 को पद्मनाथ सिंह का जन्म ग्राम परदहां जनपद आजमगढ़,( वर्तमान में जनपद मऊ ) में हुआ. प्रारंभिक शिक्षा गांव में, कक्षा 8 वीं तक जीवन राम इण्टर कालेज मऊ में हुई. आगे की शिक्षा बनारस में क्वींस कालेज, उदय प्रताप कालेज तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की डिग्री प्राप्त की.
पद्मनाथ सिंह आजादी के बाद की प्रथम विधानसभा जो जनपद आजमगढ़ के मुहम्मदाबाद दक्षिणी के नाम से थी जिसमे मऊ भी सम्मिलित था के सदस्य ( विधायक) निर्वाचित हुए.
पद्मनाथ सिंह ने स्वतंत्र भारत के निर्माण प्रक्रिया में अपने क्षेत्र के विकास की एक मजबूत आधारशिला रखी.
पद्मनाथ सिंह ने पांच वर्षों में खुरहट पम्प कैनाल , गोठा पम्प कैनाल , थर्मल पावर हाऊस , वनदेवी वन को आरक्षित वन , 26 सरकारी नलकूप , बुनकर कालोनी , परदहां विकास खण्ड , सठियांव चीनी मिल समेत अनेक कार्य करवाए. हर गांव सभा मे प्राथमिक विद्यालय , 1955 की भंयकर बाढ़ के बाद घाघरा के दक्षिणी तट पर बांध बनना प्रारम्भ , जयपुरिया ने संसाधनों से प्रेरित होकर स्वदेशी काटन मिल स्थापित की. बाद में प्रयास कर परदहां में राजकीय कताई मिल स्थापित कराई. वीर पद्मनाथ सिंह ,गांधी, सुभाष के आजादी के आह्वान से प्रेरित होकर स्वाधीनता के आंदोलन में समर्पित हो गए. जब बनारस के क्वींस कालेज मे कक्षा 10 के विद्यार्थी थे तो कालेज की प्राचीर पर तिरंगा फहराने के लिए उन्हे दो माह जेल की सजा अंग्रेजों द्वारा दी गई.
1934 में बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी से विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की. आजमगढ़ में वकालत प्रारम्भ की लेकिन अग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा.1942 मे भारत छोड़ो आंदोलन में बनारस से इलाहाबाद मे क्रातिकारियों की एक गुप्त बैठक में जाते वक्त बनारस कैंट स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिए गए. उसी दौरान बनारस सेंट्रल जेल में उनके पिता बाबू राम रहस्य सिंह जब उनसे मुलाकात करके परदहां गांव लौट रहे थे, रास्ते में दुर्घटना का शिकार हो गए. उनकी मृत्यु की खबर जेल भेजी गई. पद्मनाथ सिंह अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थे. उनको पिता के अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं छोड़ा गया क्योंकि उन्होंने अग्रेंजो की क्षमा मांगने की शर्त स्वीकार नहीं की. बाद के दिनों में वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता के रुप में मान्य हुये और उच्च न्यायालय द्वारा 1992 में उनको वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया.
-जेल में लिखी किताब, लेख-
जेल में ही पद्मनाथ सिंह ने साम्प्रदायिक समस्या पर “जेल की डायरी “नामक पुस्तक लिखी. देश की समस्याओं पर चिंतन और समाधान पर अनेक लेख व पुस्तकें लिखी जिनमें देश के चुनाव प्रक्रिया में बदलाव , भारत के संविधान में सुधार से जुड़े लेख शामिल रहे. अपने जीवन काल में पद्म नाथ सिंह जन सेवा और गरीबों के उत्थान के लिए प्रयासरत रहे.
सरकार से मदद नहीं ली, घर भी दान-

सेनानियों के पुनर्वास के लिए स्वतंत्र भारत की सरकार ने पद्मनाथ जी को 60 बीघे भूमि देने की पेशकश की, मगर उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया.उत्तर प्रदेश की सरकार ने जमींदारी उन्मूलन हेतु गठित समिति में पद्मनाथ जी को शामिल किया. उन्होंने उपेक्षित लोगों के हित मे अधिनियम लागू कराने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.
स्व. पद्मनाथ सिंह का यह मानना था कि आजादी की लड़ाई में उनके माँ-बाप ने कहीं ज्यादा पीड़ा झेली. अग्रेंजों का उत्पीड़न सहा. उनके जेल मे रहते पिता की असामयिक मृत्यु हुई , इस कारण उनका स्वाधीनता आंदोलन में ज्यादा योगदान रहा. इस कारण उन्होंने अपने पुश्तैनी घर को विद्यालय बनाने के लिए सरकार को दान कर दिया. इसका शिलान्यास 1998 मे तत्कालीन उ.प्र.विधानसभा अध्यक्ष केशरीनाथ त्रिपाठी द्वारा किया गया.

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