राजस्व अफसरों ने मथुरा के मंदिरों का खर्च रोका, पर्यटन वाले तय कर रहे कैसे बनेगी फिल्म??
लखनऊ, सन्डे मेल ब्यूरो(9140055011)
उत्तर प्रदेश सरकार के कुछ अफसरों की कारस्तानी देखिए. शासन और राजस्व बोर्ड के सचिव ने मथुरा के 9 मंदिरों की पूजा-आरती की रकम 4 साल नहीं दी. जब हाईकोर्ट ने फटकारा तो 24 घण्टे में लाइन पर आ गए. दूसरा है पर्यटन विभाग. इसके अफसर उन कामों के लिए भी दोनों हाथ से करोड़ों रुपए खर्च करने को तैयार हैं जिसकी विशेषज्ञता उनके पास नहीं. ये विभाग करीब 1.5 करोड़ में 1.5 मिनट की फिल्म बनवाने निकल पड़ा है. इसमें 25 करोड़ रुपए खर्च करने की तैयारी है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की कोर्ट में 20 मार्च को उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के सचिव/ आयुक्त एसबीएस रंगाराव की पेशी हुई. बोर्ड ने 4 साल से मथुरा के वृंदावन स्थित ठाकुर रंग जी महाराज विराजमान समेत 9 मंदिरों की वार्षिकी रोक रखी थी. मंदिर की तरफ से हाईकोर्ट का दरवाजा खटकाया गया और हाईकोर्ट ने व्यक्तिगत पेशी पर हाजिर होने का आदेश दिया और कहा कि मुख्यमन्त्री के संज्ञान में भी यह मामला भेजा जाए. रंगाराव भुगतान करके कोर्ट में माफी मांगने आए. कोर्ट ने कहा कि मथुरा का यह मामला अफसरों की लाल फीताशाही का क्लासिक नमूना है.
राजस्व परिषद और शासन का यह रवैया मुख्यमन्त्री के लिए असहज हालात पैदा करने वाला है.
अब आइए पर्यटन विभाग पर. जिलों में स्थित अपने होटल और धर्मशालाएं चला पाने में नाकाम हो चुके इस विभाग ने फिल्म बनाने के नियम-कायदे खुद ही तय कर दिए. उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के मन्त्री जयवीर सिंह को मालूम हो या नहीं, उनके प्रमुख सचिव/ महा निदेशक मुकेश मेश्राम और प्रचार से जुड़ी अफसर दीपिका सिंह ने मिलकर लगभग डेढ करोड़ में डेढ मिनट की फिल्म बनाने के लिए बड़ी जल्दबाजी में टेंडर जारी कर दिया है. करीब 25 करोड़ रुपये की फिल्में कैसे बनाई जायेगी? इसकी राय भी उसी विभाग के अफसरों ने तैयार की है जो अपने ही होटल किराये पर उठाने में लगे हैं. इसके पहले तक यहाँ एक सलाहकार जेपी सिंह भी थे, जिनका कार्यकाल खत्म हो चुका है मगर उनकी ‘व्यवहारिक दखल’ जारी है.
कैसे तैयार हुई है 25 करोड़
खर्च करने की योजना?
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग बड़ी जल्दबाजी में है. जिस दिन देश में लोक सभा चुनाव की तारीखें घोषित होने की चर्चा थी, उसी दिन एक विज्ञापन अखबारों में जारी हुआ. तारीख थी 15 मार्च. करीब 25 करोड़ रुपये खर्च करके कुंभ से लेकर काशी तक एक दर्जन से अधिक विषयों पर फिल्म बनाने के लिए. विभाग के पास फिल्म बनाने की तकनीकी योग्यता नहीं है. मगर उसके लिए नियम शर्तें ( 32 पेज का रिक्वेस्ट फॉर प्रपोज़ल RFP) खुद तय कर ली. प्रदेश में फिल्म विकास परिषद भी है, दूरदर्शन केंद्र भी है और भारत सरकार के पास पूरी क्षमता के साथ फिल्म बनाने का संस्थान भी है. मगर इनमें से किसी की राय नहीं ली गई. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिस लालफीताशाही का जिक्र किया है; शायद वह पर्यटन विभाग पर भी फिट बैठती हो?
बहरहाल, पर्यटन विभाग के अफसर इस मसले पर सीधी टिप्पणी नहीं कर रहे. न प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम न प्रचार अधिकारी दीपिका सिंह. जो दस्तावेज उपलब्ध हैं, वो विभाग के कुछ अफसरों की नीयत पर संदेह जरूर पैदा करते हैं.
यह पूरा मामला मंत्री जयवीर सिंह की जानकारी में है या नहीं? इसका उत्तर उनके दफ्तर से मिल नहीं सका ( अगर कोई सूचना मन्त्री या विभाग की तरफ से मिलती है तो उसे भी स्थान दिया जायेगा).
क्या क्या काम होना है?
प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों, विषयों पर फिल्म बनाने के लिए टेंडर जा हुआ है.
लगभग 90 सेकेंड की फिल्म पर डेढ़ करोड़ रुपए खर्च होगा.फिल्म यानी शॉर्ट फिल्म छोटी सी एक क्लिप. इनमें कहीं राम वन गमन पथ दिखेगा, कहीं पर काशी की सुबह. अवध की शाम. कुंभ की महिमा तो कहीं पर क्रांति और अन्य संस्कृति. कहीं बुंदेलखंड की संस्कृति और वृंदावन के मोहक रूप दिखेंगे.इस मोहक रूप के पीछे कहीं बड़े खेल की तैयारी तो नहीं?
फिल्म बनाने के लिए कंपनी से जो स्पेसिफिकेशन मांगा गया है, जो अनुभव मांगा गया है उसमें 30 करोड रुपए का टर्नओवर का जिकर है. साथ ही एक शर्त यह भी जोड़ दी गई है कि दो-दो करोड रुपए के चार काम कंपनी ने किए हों.
ऐसा क्यों किया गया?
90 सेकंड की यह जो फिल्में बनाई जाएगी, इनको 12 भाषाओं में डब करने की तैयारी भी हुई है. यह 12 भाषाएं फ्रेंच स्पेनिश, जर्मन इटालीयन, रूसी, पुर्तगीज अरबी, थाई , जापानी कोरियन, सिंगली और चीनी भाषा होगी. दो माह में एक फिल्म पूरी करनी होगी और बाकी के लिए महानिदेशक बताएंगे कि कैसे क्या करना है? जो टेंडर निकाला गया है उसमें परफॉर्मेंस के नाम पर यह कहा गया है कि सामान्य तौर पर जो प्रोफेशनल मानक अपनाए जाते हैं, वही मानक अपनाने होंगे. यानी की फिल्म की गुणवत्ता की जांच कैसे की जाए ? इसका कोई स्पेसिफिकेशन नहीं लिखा गया. विभाग की कार्य प्रणाली पर पहले भी सवाल उठे हैं. जिस विषय की जानकारी नहीं है उसकी ठेकेदारी करने से ही चित्रकूट में पर्यटन मेले के दौरान प्रदर्शनी में आतिशबाजी के दौरान विस्फोट में कई लोग मारे जा चुके हैं.