गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाओं को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन चालाई जा रही है। योजना के तहत स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनको प्रशिक्षण देकर उन्हें मुख्य धारा से जोड़ना है। लेकिन चायल और नेवादा ब्लॉक में जिम्मेदारों की लापरवाही से ज्यादातर स्वयं सहायता समूह धरातल पर कागजों में समृद्ध हो रही है। मिशन का लक्ष्य पूरा करने के लिए केवल समूह गठन तक सीमित रह गया है। स्वरोजगार के लिए मिली अनुदान राशि समूह की महिलाओ ने निजी कार्यो में लेकर खर्च कर लिया है।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को सुचारु रूप से कार्यान्वयन के लिए ब्लाक के एडीओ आईएसबी के अधीन बीएमएम (ब्लाक मिशन मैनेजर) की तैनाती कर स्वयं सहायता समूह का गठन कर महिलाओं को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। विकास खंड चायल के जलालपुर शाना में चल रहे जय मां लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह की सदस्य रूमा देवी गृहणी हैं, जबकि उनको मनरेगा महिला मेठ बनाया गया है। प्रशिक्षण के आभाव में मोबाइल पर आन लाइन श्रमिकों की हाजिरी भी नहीं भर पाती हैं। ओमवती महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य ओमवती को मनरेगा कार्यदायी संस्था का बोर्ड पर पेंट से लिखने की जीमनेदारी दी गई। प्रशिक्षण के आभाव में बोर्ड तैयार नहीं कर पाती हैं। गायत्री महिला समूह की मोनिका देवी, नेवादा के चंदूपुर अमरायन के मां काली स्वयं सहायता समूह गीता देवी, जवाहरगंज के राधा स्वयं सहायता महिला समूह की गुड्डी देवी ने डेयरी फार्म खोलवाने के लिए बोला गया था। प्रशिक्षण के आभाव में डेयरी फार्म का काम शुरु नहीं होने से घरेलू कार्य में जुटी रहती हैं। प्रशिक्षण के आभाव में अतिरिक्त आमदनी नहीं हो रही है। कब्या स्वयं सहायता समूह की शीला देवी और गीता देवी ने बताया की साल भर समूह गठन हो गए। आधार कार्ड फोटो आदि लेकर बैंक में समूह का खाता खुलने के बाद 2500 रुपये और 15000 रुपये भी आ गए हैं। अचार, मुरब्बा, जैम, जेली, दुग्ध उत्पादन, मोमबत्ती आदि उत्पाद निर्माण के लिए प्रशिक्षण देने को कहा गया है। प्रशिक्षण के आभाव में काम आगे नहीं बढ़ा है। सदस्यों ने अनुदान राशि निकाल आपस में बांट निजी काम में ले लिया है। उनका कहना है कि तभी ब्लाक बुलाया जाता है जब कभी रैली और सरकार के सभाओं में भीड़ जमा करनी होती है। रैली और सभाओ में शामिल कर वापस घर भेज दिया जाता है। इससे वह आत्मनिर्भर नहीं बन पा रहीं हैं।

ज्यादातर समूह की एक-एक महिला सदस्य को मिल रहा है लाभ
सदस्य गायत्री देवी, गुड्डी देवी, ओमवती, तारा देवी ने बताया कि प्रधान और सचिव चहेते समूह की एक एक महिलाओं को सार्वजनिक शौचालय केयर टेकर, मनरेगा महिला मेठ, बीसी सखी, विद्युत सखी के रूप में तैनाती की है। शौचालय केयर टेकर को छह हजार रुपये प्रतिमाह, बीसी सखी को चार हजार रुपये, महिला मेठ को मनरेगा योजना से मानदेय मिल रहा है। प्रशिक्षण के आभाव में बाकी सदस्य महिलाओ को कोई लाभ नहीं मिल रहा है।

सरकार से मिलने वाली सहायता राशि
स्वयं सहायता समूह का खाता खुलने के बाद 2500 रुपये स्टार्टप, 15000 रुपये रिवोल्विंग फंड (परिकामी निधि) के छह माह बाद सीआईएफ के तहत ( समुदायिक निवेश कोष) 1.10 लाख रुपये मिलता है। उत्पाद निर्माण के लिए समूह की महिलाएं बैंक सीसीएल के तहत वार्षिक टर्न ओवर के आधार पर ऋण के लिए आवेदन कर सकती हैं।

-लक्ष्य के सापेक्ष सिर्फ 20 प्रतिशत समूह का ही खुला बैंक खाता
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के वित्तीय वर्ष 2023-24 में जनपद की रिपोर्ट पर गौर करें तो 6880 समूह गठन लक्ष्य के सापेक्ष महज 2617 समूह का ही गठन हुआ है। इसमें भी सिर्फ 1373 स्वयं सहायता समूह का बैंको में बचत खाता खोला जा सका है।

Input- विनोद सिंह रंधावा (कौशांबी)

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