बीपी सिंह, प्रयागराज/ प्रतापगढ़

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के टिकट वितरण और उसके बाद वरिष्ठ नेताओं की नाकदरी ने हालात पेचीदा कर दिए हैं. भाजपा के संगठन से मोर्चा लेना तो बाद की बात है, सपा प्रत्याशियों के सामने अपना कुनबा समेटकर रख पाना ही मुश्किल दिख रहा है. सपा के वरिष्ठ नेता और रानी गंज के मौजूदा विधायक डॉ. आर के वर्मा की नाराजगी और उनका मौन भाजपा के लिए फायदे का सौदा बन गया है. डॉ. वर्मा का मौन ‘कमल’ के लिए खाद का काम कर सकता है.
हम यहाँ दो लोकसभा क्षेत्रों की बात कर रहे हैं. फूलपुर और प्रतापगढ़. इन दोनो इलाके की कम से कम तीन विधान सभा क्षेत्रों में जोरदार पकड़ रखने वाले विधायक डॉ.आरके वर्मा ‘खामोश’ हैं. रानीगंज से सपा से विधायक डॉ वर्मा पहले विश्व नाथ गंज से अपना दल से जीत चुके हैं. अनुप्रिया पटेल के पति से विवाद के बाद वे पहले उप मुख्य मन्त्री केशव प्रसाद के निकट आये और बाद में अखिलेश यादव के साथ सपा में आ गए. विश्व नाथ गंज के बजाय सपा ने उन्हें रानी गंज में चुनाव लड़ाया. ब्राह्मन बहुल सीट से भी वर्मा जीते. वे प्रतापगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे पर यहाँ पर दूसरे जिले के नेता एसपी सिंह पटेल को सपा ने टिकट दे दिया. सियासी लोग कहते हैं कि पटेल ने डॉ. वर्मा को यथोचित सम्मान भी नहीं दिया. अलबत्ता विधायक वर्मा 1 मई को सपा के नामांकन जुलूस में शामिल नहीं हुए. सपा के एक नेता कहते हैं डॉ. वर्मा सोरांव विधान सभा में भी सक्रिय रहे हैं और अपना दल के प्रदेश अध्यक्ष होने के दौरान अपना दल को खड़ा किया. उनकी सक्रियता से ही अपना दल एस ने दलित नेता डॉ जमना प्रसाद सरोज को विधायक बना दिया. जब वर्मा सपा में आ गए तो भाजपा अपना दल के प्रत्याशी होने के बावजूद डॉ. जमुना प्रसाद सरोज चुनाव हार गए. सोराव में सपा जीती. तीन विधान सभा इलाको में सीधा दखल रखने वाले वर्मा प्रयाग राज शहर में भी सक्रिय और प्रभावी हैं. सपा का एक खेमा उनको फूलपुर से भी सपा का टिकट दिए जाने की मांग कर रहा था. भाजपा ने फूलपुर की स्थापित नेता केशरी देवी पटेल का टिकट काट कर जिन प्रवीन पटेल को टिकट दिया है, वे बमुश्किल 2 हजार वोट से चुनाव जीते थे. ऐसे में सपा के लिए एक खेमा डॉ. आर के वर्मा को बेहतर विकल्प मान रहा था. सपा ने फूलपुर में भी वर्मा के बजाय अमर नाथ मौर्य को टिकट दे दिया. विधायक डॉ.वर्मा अपनी सक्रियता को दरकिनार किए जाने से स्वाभाविक तौर पर खुश नहीं. उन्हें टिकट न प्रतापगढ़ से मिला न फूलपुर से. रही सही कसर कथित तौर पर नेताओं के व्यवहार ने पूरी कर दी. ऐसे में सपा का अनुशासित सिपाही बने रहने की चुनौती और अंतस की हताशा ने उनको ‘मौन’ कर दिया है. सूत्र कहते हैं कि नाम दाखिला की आखिरी तारीख तक उन्हें फूलपुर का टिकट बदले जाने की उम्मीद नजर आती है. पर डॉ वर्मा मीडिया से खुलकर कुछ भी बोलने से इंकार करते हैं. ‘सन्डे मेल’ से उनके एक निकट सहयोगी ने कहा कि पार्टी को नेताओं के मुल्यांकन का पैमाना ठीक करना चाहिए बहरहाल विधायक वर्मा मौन हैं. उनकी यह खामोशी प्रतापगढ़ और फूलपुर में ‘कमल’ के लिए ‘खाद’ का काम भी कर सकती है. ऐसे में भाजपा ने अपने चुनावी प्रबंधको को मैदान में सक्रिय कर दिया है. इन दोनो लोक सभा इलाकों में वर्मा की जाति यानी पटेल मतदाताओं की निर्णायक संख्या है. वैसे भी प्रतापगढ के वोटर स्थानीय और बाहरी प्रत्याशी होने की चर्चा करते हुए चौक चौराहों पर मिल जायेंगे. भाजपा अगर विधायक डॉ. वर्मा के इस मौन का संदेश दूर तक पहुंचा ले गई तो सपा के लिए दिल्ली दूर ही है.

1 comment on “क्या ‘कमल’ खिलाएगा डॉ आरके वर्मा का ‘मौन व्रत’?

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