प्रयागराज. मनुष्य जन्म लेता है और आयु बढ़ने के साथ वृद्धावस्था को प्राप्त करता है. मानव को दीर्घायु बनाने तथा जरण को रिवर्स करने हेतु निरंतर अनेक शोध हो रहे हैं। सोचिए आज जब मानव पूर्णतया संसाधन-युक्त है, सूचना- प्रौद्योगिकी से लैस है फिर भी अपने मूल निवास से प्रवासन नहीं करना चाहता, तो फिर ऐसे कौन से कारक थे, ऐसे कौन से उत्प्रेरक अथवा उद्दीपन थे जिनके कारण आज से 70-80 हजार साल पहले मात्र लगभग दस हजार की संख्या वाले होमो-सेपियंस अफ्रीका से प्रवासित होकर पूरी दुनिया में फैल गए? अलग-अलग लोग दाहिने और बाएं हाथ से कैसे काम करने लगे, क्यों ज्यादातर ने दाहिने हाथ से काम करना शुरू किया, और कैसे लिपियों के अविष्कार के बाद दाहिने से बाएं लिखना शुरु हुआ, प्राइमेट के व्यवहारों में उद्विकास के साथ कैसे परिवर्तन आया आदि अनेक विषयों पर बोलते हुए संकायाध्यक्ष, शोध एवं विकास, इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रोफेसर एस. आई. रिज़वी ने कहा कि हमको शोध के परिणामों को अंतर-विधा लेंस के माध्यम से समझने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने आगे बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय वर्तमान में ‘साइंस’, ‘नेचर’ और ‘साइंटिफिक अमेरिका’ जैसे जर्नल्स को अपने शोधार्थियों हेतु उपलब्ध करा रहा है, आवश्यकता है कि शोधार्थी उनका नियमित रूप से अध्ययन कर अपने शोध को बेहतर करने की कोशिश करें। मानवविज्ञान एक ऐसा विषय है जो सभी विषयों से जुड़ा हुआ है और मानवविज्ञान के विद्यार्थियों को अन्य विज्ञानों के साथ अपने अध्ययनों को जोड़ने का सार्थक प्रयास करना चाहिए। यह बातें प्रोफेसर रिज़वी ने मानवविज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 17 मई को आयोजित “चतुर्थ एल. पी. विद्यार्थी मेमोरियल क्विज़ प्रतियोगिता और परास्नातक विद्यार्थियों के सम्मान- समारोह” के अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में कहीं। अधिष्ठाता, कला संकाय प्रोफेसर संजॉय सक्सेना ने बताया कि कैसे मानवविज्ञान और साहित्य के विद्यार्थी एक ही मुद्दे पर पृथक शोध पद्धतियों के माध्यम से शोध कर परिणामों का विश्लेषण करते हैं, कैसे कई जगह वो कन्वर्जेंस से एक होते दिखते हैं तो कई जगह उनके विचार और समझ अलग होते हैं। जैसे दोनों ही मिथकों का अध्ययन करते हैं, धर्म के अनेक पहलुओं को व्याख्यायित करते हैं, दोनों के अपने लेंस होते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से अपने लक्ष्यों के प्रति पूरी तरह से समर्पित होकर प्रयास करने हेतु प्रेरित किया। कार्यक्रम के दौरान, क्विज़ प्रतियोगिता में बी. ए. और बी.एस. सी. की चार टीमों ने सहभागिता की जिसमें विश्वजीत राज, शुभम कुमार सिंह और दीपक कुमार की बी.ए. तृतीय वर्ष के छात्रों की टीम विजयी रही। क्विज़ में हर्ष पाण्डे एम.ए. सेमेस्टर चतुर्थ से “बेस्ट ऑडियंस” के रूप में चुने गए। परास्नातक विद्यार्थियों के सम्मान समारोह में एम.एस.सी. चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा अंजलि सिंह और एम.ए. चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा सृजिता पाण्डे को सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का पुरस्कार मिला। इसी तरह एम.एस.सी. द्वितीय सेमेस्टर की छात्रा महिमा सिंह तथा एम.ए. द्वितीय सेमेस्टर के छात्र शशिरंजन सिंह को सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी के रूप में चयनित किया गया। विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राहुल पटेल के एक और अभिनव प्रयास के तहत दोनों सेमेस्टर से ऐसे दो विद्यार्थियों (सुधीर कुमार और संजय प्रजापति) को भी अभिप्रेरण प्रोत्साहन पुरस्कार दिया गया जिन्होंने विभिन्न समस्याओं का सामना करते हुए भी विभाग के शिक्षकों के मोटीवेशन से सेमेस्टर परीक्षा सफ़लतापूर्वक सहभागिता की। सभी विजेताओं, उपविजेताओं और सहभागियों को आचार्य अधिष्ठाता-द्वय के हाथों ट्राफ़ी और सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया गया। प्रोफेसर राहुल पटेल ने विभागाध्यक्ष के रूप में अपने एक माह के कार्यकाल की रिपोर्ट अधिष्ठाता-द्वय के सम्मुख प्रस्तुत की और बताया कि विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिक्षकों और कर्मियों से मीटिंग कर विभाग के अकादमिक माहौल को बेहतर करने के सभी प्रयास हो रहे हैं। शोधार्थियों के लिए हरेक सप्ताह शुक्रवार को विभागीय सेमिनार आयोजित हो रहे हैं, लखनऊ विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ पुनीत मिश्र का “कम्प्यूटेशनल टेक्निक्स इन सोशल साइंस रिसर्च” विषयक आमंत्रित व्याख्यान इसी के तहत गत 10 मई को आयोजित किया गया, विभाग की पी. जी. परीक्षा सम्पन्न हो गई हैं, और विद्यार्थियों को मानववैज्ञानिक शोधकार्य हेतु उत्तराखंड की भोक्सा जनजाति के अध्ययन के लिए ले जाने की तैयारी अंतिम दौर में है। विभाग के शिक्षकों डॉ शैलेंद्र मिश्र, डॉ प्रशांत खत्री, और डॉ खिरोद मोहराना ने अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्र और पुष्प गुच्छ भेंट कर किया। क्विज़ प्रतियोगिता और मंच संचालन डॉ संजय कुमार द्विवेदी, पोस्ट डॉक्टोरल फेलो, आईसीएसएसआर, नई दिल्ली के द्वारा किया गया। अंत में विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राहुल पटेल ने अतिथियों को “पीस लिली” का पौधा भेंट कर उनका आभार प्रदर्शन किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ शैलेंद्र मिश्र ने किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान से हुआ।

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